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साँझ-5 / जगदीश गुप्त करूणा की गहरी धारा, अभिलाषाआें की आँधी। मैंने पलकों में रोकी, मैंने सासों से बाँधी।।६१।। कोमलता बनी कहानी, मैं निष्ठुरता से हारा। किन शैलों से टकराई, मेरे ...